SHYAM, PHIR EK BAR TUM MIL JATE! (Hindi Edition)
DINKAR JOSHI
दौड़कर उसने कृष्ण के पाँव से तीर खींचने के लिए हाथ बढ़ाया । कृष्ण उसकी व्यग्रता को निमिष- भर ताकते रहे, फिर निषेध में दाहिना हाथ उठाया ।
जरा ठिठक गया- '' क्यों, नाथ, क्यों?''
'' रहने दो, भाई! माता गांधारी के वचन में व्यवधान बनने का व्यर्थ प्रयत्न मत करो!'' बड़ी धीरता से वे बोले ।
'' मैंने महापातक किया है! मुझे क्षमा करो, नाथ! मैंने.. .मैंने आपको जंगली प्राणी समझकर आप पर तीर चलाया । यह मैंने क्या किया, नाथ!'' जरा भूमि पर लोटकर करुण क्रंदन करने लगा ।
'' उठो वत्स!'' करुणार्द्र स्वर में कृष्ण बोले, '' तुम्हारा नाम क्या है?''
'' मेरा नाम ?. .जरा ! ''
'' जरा !. .ठीक!'' कृष्ण का मधुर हास्य छलका । तलवे से बहकर रक्तधारा भूमि पर काफी दूर चली गई थी । '' जरा, तुम्हारा नाम सार्थक है, तात ! ' जरा ' कभी किसीको नहीं छोड़ती ! अमरत्व के अभिशाप ने जिसे घेरा हो, उसे भी महाकाल जरा समेट ही लेता है न! जरा, तू तो निमित्त मात्र है, वत्स!''
- इसी उपन्यास से
कोई भी भारतीय भाषा ऐसी नहीं है जिसमें श्रीकृष्ण को केंद्र में रखकर काव्य, कहानी, उपन्यास. नाटक, संदर्भ-ग्रंथ आदि साहित्य का सर्जन न किया गया हो ।
' श्याम, फिर एक बार तुम मिल जाते ' (मूल गुजराती में लिखा) उपन्यास इन सबसे अनूठा इसलिए है कि यह सिर्फ उपन्यास नहीं है-यह तो उपनिषद् है! यथार्थ कहा जाए तो यह उपनिषदीय उपन्यास है ।
तत्कालीन आर्यावर्त्त में श्रीकृष्ण एक विराट् व्यक्तित्व था । जब यह व्यक्तित्व अनंत में विलीन हो गया तो जो सन्नाटा छा गया, उस सन्नाटे के चीत्कार का यह आलेखन है जब श्रीकृष्ण सम्मुख थे तब बात और थी जब वे विलीन हो गए तब वसुदेव-देवकी से लेकर अर्जुन, द्रौपदी, अश्वत्थामा, अक्रूर उद्धव और राधा पर्यंत पात्रों की संभ्रमिद मनोदशा को एक अनूठी ऊँचाई के ऊपर ले जाता है यह उपन्यास ।
जरा ठिठक गया- '' क्यों, नाथ, क्यों?''
'' रहने दो, भाई! माता गांधारी के वचन में व्यवधान बनने का व्यर्थ प्रयत्न मत करो!'' बड़ी धीरता से वे बोले ।
'' मैंने महापातक किया है! मुझे क्षमा करो, नाथ! मैंने.. .मैंने आपको जंगली प्राणी समझकर आप पर तीर चलाया । यह मैंने क्या किया, नाथ!'' जरा भूमि पर लोटकर करुण क्रंदन करने लगा ।
'' उठो वत्स!'' करुणार्द्र स्वर में कृष्ण बोले, '' तुम्हारा नाम क्या है?''
'' मेरा नाम ?. .जरा ! ''
'' जरा !. .ठीक!'' कृष्ण का मधुर हास्य छलका । तलवे से बहकर रक्तधारा भूमि पर काफी दूर चली गई थी । '' जरा, तुम्हारा नाम सार्थक है, तात ! ' जरा ' कभी किसीको नहीं छोड़ती ! अमरत्व के अभिशाप ने जिसे घेरा हो, उसे भी महाकाल जरा समेट ही लेता है न! जरा, तू तो निमित्त मात्र है, वत्स!''
- इसी उपन्यास से
कोई भी भारतीय भाषा ऐसी नहीं है जिसमें श्रीकृष्ण को केंद्र में रखकर काव्य, कहानी, उपन्यास. नाटक, संदर्भ-ग्रंथ आदि साहित्य का सर्जन न किया गया हो ।
' श्याम, फिर एक बार तुम मिल जाते ' (मूल गुजराती में लिखा) उपन्यास इन सबसे अनूठा इसलिए है कि यह सिर्फ उपन्यास नहीं है-यह तो उपनिषद् है! यथार्थ कहा जाए तो यह उपनिषदीय उपन्यास है ।
तत्कालीन आर्यावर्त्त में श्रीकृष्ण एक विराट् व्यक्तित्व था । जब यह व्यक्तित्व अनंत में विलीन हो गया तो जो सन्नाटा छा गया, उस सन्नाटे के चीत्कार का यह आलेखन है जब श्रीकृष्ण सम्मुख थे तब बात और थी जब वे विलीन हो गए तब वसुदेव-देवकी से लेकर अर्जुन, द्रौपदी, अश्वत्थामा, अक्रूर उद्धव और राधा पर्यंत पात्रों की संभ्रमिद मनोदशा को एक अनूठी ऊँचाई के ऊपर ले जाता है यह उपन्यास ।
Տարի:
2014
Հրատարակչություն:
Prabhat Prakashan
Լեզու:
hindi
Ֆայլ:
PDF, 2.28 MB
IPFS:
,
hindi, 2014